
पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय
इन दोनो हालातो मे धन संचय करने की कोई आवश्यकता ही नही होती ।यदि आपका पुत्र आपके द्वारा दिये हुये शिक्षा और संस्कार को अपने जीवन मे ऊतार लेता है और वह पुत्र आपके आदेशो को अपना कर्तव्य मानता है तो ऐसा पुत्र अपने परिवार और अपना नाम पूरे जगत मे रोशन करता है क्योकि उसके अन्दर वह गुण होता है जिसके माध्यम से वह अच्छे और बुरे का फर्क को भली भांति से जानता है । यदि ऐसा पुत्र किसी के भी तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि उनके लिये धन संचय मतलब पैसा इकठ्ठा करने का कोई लाभ नही होगा । पुत्र यदि अपने पिता के सच्चे आचरण को अपने जीवन मे ऊतार लेता है तो ऐसे पुत्र को धन की आवश्यकता नही होती है ।


नमस्कार दोस्तो मै अपने वेबसाइट मे आप सभी का स्वागत करता हूं । जैसे कि आप सभी ने मे ब्लाग पोस्ट के शीर्षक को पढकर यह समझने की कोशिश कर रहे होंगे कि इस शीर्षक का आखिर क्या मतलब होता है । इस शीर्षक को बहुत से लोग समझ गये होगे और बहुत से लोगो को इस शीर्षक का मतलब भी पता नही होगा । चिंता करने की कोई बात नही है मै यह शीर्षक को समझाने के लिये ही लेकर आया हूं ।
दोस्तो मेरे ब्लाग के शीर्षक मे जो लिखा है वो एक कहावत है जो एकदम सच है । इस कहावत के बारे मे कई लोगो को पता नही होगा परन्तु बहुत से ऐसे लोग है जिन्होने यह कहावत कही तो सुनी होगी परन्तु उसका मतलब नही जानता होगा । वही मै अपने इस ब्लाग मे बताने वाला हूं ।
यदि बेटा आज्ञाकारी होगा :-
दोस्तो यदि आपका पुत्र आपके द्वारा दिये हुये शिक्षा और संस्कार को अपने जीवन मे ऊतार लेता है और वह पुत्र आपके आदेशो को अपना कर्तव्य मानता है तो ऐसा पुत्र अपने परिवार और अपना नाम पूरे जगत मे रोशन करता है क्योकि उसके अन्दर वह गुण होता है जिसके माध्यम से वह अच्छे और बुरे का फर्क को भली भांति से जानता है । यदि ऐसा पुत्र किसी के भी तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि उनके लिये धन संचय मतलब पैसा इकठ्ठा करने का कोई लाभ नही होगा । पुत्र यदि अपने पिता के सच्चे आचरण को अपने जीवन मे ऊतार लेता है तो ऐसे पुत्र को धन की आवश्यकता नही होती है ।
यदि पुत्र आज्ञा का उलंघ्घन करने वाला हो:-
यदि किसी का ऐसा पुत्र है जो हमेशा अपने माता पिता की बातो को टालता है ,कोई भी सलाह देने पर उस सलाह को बेकार समझता है, हमेशा अमीर इंसान बनना चाहता है । ऐसे पुत्र के लिये यदि कोई माता पिता अपार धन भी इकठ्ठा कर देता है तो भी वह पुत्र इस धन को कुछ ही समय मे नष्ट कर सकता है और फिर वह उसी धन के पीछे भागने लगता है ।


दोस्तो ऊपर बताये गये बातो को हम कुछ और तरह से समझ सकते है । जैसे किसी व्यक्ति के पास एक रूपय है तो वह व्यक्ति यदि मेहनत करने वाला और सभी जरूरी बातो को सुनने वाला होगा तो वह उस एक रूपये का ऐस इस्तेमाल करेगा कि वह धीरे धीरे एक दिन कई हजार बन जायेगा और वह अपना और अपने परिवार का जीवन आराम से गुजार सकता है ।




ठीक वैसे ही एक इंसान के पास हजारो रूपयें उसके पिता के द्वारा दिया गया है परन्तु वह इंसान एकदम से कोई कार्य नही करना चाहता और अमीर इंसान बनने की लालसा रखता है साथ ही अपने बड़ो का सलाह को लेना उचित नही समझता हर कार्य मे अपने आप को होशियार मानता है ऐसे इंसान उस हजार रूपये को सही जगह और सही समय पर इस्तेमाल नही कर पाता जिससे आने वाले समय मे वह हजार रूपये उसके पास नही रहता ।
दोस्तो ज्यादा घुमा फिराकर मुझे बात करनी नही आती है मै एक ऐसा इंसान हूं जिन्होने हर दर्द को सहा है और इसलिये मै सब बात अपने तजुर्बे से बता रहा हूं । जब कोई इंसान अपने पुत्र के लिये खूब सारा धन जमा करके अपने पुत्र को देता है तो यदि वह पुत्र नाकारा रहता है तो उस धन का समय उपयोग नही कर सकता उसे गलत तरीके से खर्च कर देता है और फिर कंगाल हो जाता है । दूसरी तरफ यदि कोई पिता अपने पुत्र को केवल अच्छा आचरण और अच्छी ज्ञान दे सकता है जिसे यदि समझने वाला पुत्र उसके पास हो तो वह पुत्र अपने पिता द्वारा दिये गये ज्ञान से अपार धन जमा कर सकता है । कहने का सीधा सा मतलब यह है कि यदि किसी का पुत्र नालायक और अवज्ञाकारी होता है तो उस पुत्र को कितना भी धन दे दो उसे वह कम ही समझेगा , और यदि किसी का पुत्र काबिल और आज्ञाकारी होता है तो उसे अपने पिता से कोई धन नही चाहिए होता है वह केवल अपने पिता को अपने साथ चाहता है ।